श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी – लघुकथा – पगडंडी।)
☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – पगडंडी ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
एक लम्बी सड़क में से थोड़ी-थोड़ी दूरी में कई पगडंडियांँ निकलती थीं। एक दिन एक पगडंडी ने सड़क से कहा – तुम्हारे तो मज़े होंगे बहन! कहीं खेत, कहीं पहाड़, कहीं नदी, कहीं झील, कहीं बाग़। तुम तो रोज़ नए नजारे देखती हो। और फिर तुम्हारी देह पर कितनी सुन्दर-सुन्दर गाड़ियांँ दौड़ती हैं- काली, सफ़ेद, लाल, नीली, पीली और उन गाड़ियों में सुन्दर चेहरे, ख़ुशबू, संगीत हंँसी… मज़ा आ जाता होगा। नहीं? एक मैं हूंँ। कभी-कभी कोई आता है। आता भी कौन है – बैलगाड़ी, ऊंँटगाड़ी, कंधे पर हल लादे किसान – दलिद्दर जिनके चेहरों से टपकता है, सिर पर लकड़ियों या घास के गट्ठर लादे औरतें या दिशा-मैदान जाते ऊंँघते से आदमी… फ़क़त!
सड़क ने एक ठंडी सांँस ली – शुक्र कर कि तू सड़क नहीं है। हर रोज़ दुर्घटनाओं में लोगों को मरते देखती हूंँ, परिजनों की चीख़ों से दिल दहल जाता है। कभी अलग-अलग समुदायों के लोग मेरी छाती पर चढ़कर आपस में मारकाट करने लगते हैं। कभी मेरी देह पर धरना देते मजदूरों या छात्रों पर लाठियां गोलियांँ बरसने लगती हैं। मैं ख़ून से सन जाती हूंँ। अभी पिछला ख़ून सूखता नहीं कि एक और झरना फूट पड़ता है। हर समय अपनी देह को ख़ून से लिथड़े देखना कितना वीभत्स है, तुम क्या जानो। काश मैं पगडंडी होती!
© हरभगवान चावला
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈