डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। क्षितिज लघुकथा रत्न सम्मान 2023 से सम्मानित। अब तक 450 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं बारह पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं  (वार्षिक)  का  सम्पादन  एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। आपने लघु कथा को लेकर कई  प्रयोग किये हैं।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है, जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। आज प्रस्तुत हैआपकी  एक विचारणीय लघुकथा –हिंदुस्तानी नीरो“.)

☆ लघुकथा – हिंदुस्तानी नीरो ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल

यूक्रेनियों ने रसियन स्टॉर्म जी की यूनिट को 12 घंटे के लंबे ऑपरेशन में लगभग 1800 मीटर तक खदेड़ दिया-मोबाइल पर समाचार आ रहा था।

कोई हिंदुस्तानी नीरो नीम की छांव में लेट कर बांसुरी बजा रहा था।

हंसकर बोला – सालों से चल रहे इस भयानक युद्ध में पीछे और पीछे घिसटते हुए यूक्रेन ने यदि कुछ मीटर पीछे खदेड़ दिया तो क्या यह छोटी-मोटी कामयाबी है। ‌ उसके हौसले की दाद देनी चाहिए। कहकर हिंदुस्तानी नीरो फिर बांसुरी बजाने लगा।

कहते हैं कभी रोम जल रहा था और कोई नीरो हीरो बना बांसुरी बजा रहा था। उससे कहीं तो हिंदुस्तानी नीरो ज्यादा अच्छा निकला जो एक पिछड़ते देश को मिली छोटी सी कामयाबी पर बांसुरी बजाकर उसकी हौसला अफजाई कर रहा था।

निराशा में आशा के दो बोल भी बहुत मददगार बनते हैं। जीतने वाले की प्रशंसा तो हर कोई करता है पर हारे हुए की बैसाखी बनना छोटी-मोटी इंसानियत नहीं है।

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© डॉ कुँवर प्रेमिल

संपादक प्रतिनिधि लघुकथाएं

संपर्क – एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मध्यप्रदेश मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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