श्रीमति सखी सिंह
अबकी होली …. बेरंग होली
(श्रीमति सखी सिंह जी का e-abhivyakti में स्वागत है।
प्रस्तुत कर रहा हूँ प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमति सखी सिंह जी की कविता बिना किसी भूमिका के उन्हीं के शब्दों के साथ – एक ख्याल आया रात कि जो शहीद हुए हैं पिछले कुछ दिनों में उनके घर का आलम क्या होगा इस वक़्त। मन उदासी से भर गया। आंखें नम हो गयी। )
उन सभी लोगों को समर्पित जो कहीं न कहीं इस दर्द से जुड़े हैं।
अबकी होली बेरंग होली
सैयां न अब घर आएंगे,
नयन हमारे अश्क़ बहाते
चौखट पे जा टिक जाएंगे।
राह हो गयी सूनी कबसे
पिया गए किस देश हमारे
भारत माँ की चुनर रंग दी
सुर्ख लहूँ के बहा के धारे
माटी को मस्तक धारूँगी
माटी में पिया दिख जाएंगे।
अबकी होली बेरंग होली….
गहनों की झंकार तुम्ही थे
मेरा सब श्रृंगार तुम्हीं थे
मात पिता के तुम थे सहारा
सपनों का आधार तुम्ही थे
सपने बिखरे साथ तुम्हारे
बिन सपनों के कित जाएंगे।
अबकी होली….
© सखी सिंह, पुणे