डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल
कलम की नोक पर तलवार थी
(प्रस्तुत है डॉ उमेश चंद्र शुक्ल जी की बेहतरीन गजल । )
हमारी लाश का यूँ जश्न मनाया जाए,
सियासतदारों की गलियों में घुमाया जाये ॥
यही वह आदमी है जिसने उन्हें बेपर्द किया,
जल्द फिर लौटेगा ये उनको चेताया जाये॥
लोग मर जाते हैं आवाज नहीं मारती कभी,
गूंज रुकती नहीं कितना भी दबाया जाए॥
किसी खुद्दार के खुद्दारीयत का नामों निशां,
कभी मिटता नहीं कितना भी मिटाया जाये॥
किसी का पद, कोई रुतबा, किसी हालात से यह,
कभी डरता नहीं था कितना भी डराया जाये॥
कलम की नोक पर तलवार थी रक्खी इसने,
सदा बेखौफ था उन सबको बताया जाये ॥
वह निगहबान है सड़क से संसद तक ‘उमेश’,
उसके ऐलान को उन सब को सुनाया जाये॥
© डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत मुबारक़