हेमन्त बावनकर

गैस त्रासदी

(आज से  34 वर्ष पूर्व  2-3 दिसंबर 1984 की रात  यूनियन कार्बाइड, भोपाल से मिक गैस  रिसने  से कई  लोगों  की मृत्यु हो गई थी ।  मेरे काव्य -संग्रह  ‘शब्द …. और कविता’ से  उद्धृत  गैस त्रासदी पर श्रद्धांजलि स्वरूप।)

हम
गैस त्रासदी की बरसियां मना रहे हैं।
बन्द
हड़ताल और प्रदर्शन कर रहे हैं।
यूका और एण्डर्सन के पुतले जला रहे हैं।

जलाओ
शौक से जलाओ
आखिर
ये सब
प्रजातंत्र के प्रतीक जो ठहरे।

बरसों पहले
हिटलर के गैस चैम्बर में
कुछ इंसान
तिल तिल मरे थे।
हिरोशिमा नागासाकी में
कुछ इंसान
विकिरण में जले थे।

तब से
हमारी इंसानियत
खोई हुई है।
अनन्त आकाश में
सोई हुई है।

याद करो वे क्षण
जब गैस रिसी थी।

यूका प्रशासन तंत्र के साथ
सारा संसार सो रहा था।

और …. दूर
गैस के दायरे में
एक अबोध बच्चा रो रहा था।

ज्योतिषी ने
जिस युवा को
दीर्घजीवी बताया था।
वह सड़क पर गिरकर
चिर निद्रा में सो रहा था।

अफसोस!
अबोध बच्चे….. कथित दीर्घजीवी
हजारों मृतकों के प्रतीक हैं।

उस रात
हिन्दू मुस्लिम
सिक्ख ईसाई
अमीर गरीब नहीं
इंसान भाग रहा था।

जिस ने मिक पी ली
उसे मौत नें सुला दिया।
जिसे मौत नहीं आई
उसे मौत ने रुला दिया।

धीमा जहर असर कर रहा है।
मिकग्रस्त
तिल तिल मौत मर रहा है।

सबको श्रद्धांजलि!
गैस त्रासदी की बरसी पर स्मृतिवश!

© हेमन्त बावनकर

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डॉ भावना शुक्ल

मार्मिक कविता

गंगा प्रसाद शर्मा ' गुणशेखर'

भोपाल गैस त्रासदी ne भोपाल को जिस प्रकार अपंग और दुर्बल बनाया है वह उदाहरण दुनिया के किसी और देश में खोजना मुश्किल हैl वह इसलिए कि सभी लोकतांत्रिक देशों में व्यवसाय के कुछ नियम हैं जिनकी अनुपालना सुनिश्चित न किए जाने पर अर्थ जेल जाने की सजा तक मुकर्रर की जाती हैl परंतु हमारा भारत उदार इसकी उदारता के कारण ही अमेरिकन व्यापारी हाथ हिलाता हुआ निकल गया और अपंग हुए भारतीय दया की भीख मांगते रहे l आपकी कविता is संवेदना को पूरी शिद्दत से जीती हैl अभिव्यक्ति के उत्कृष्ट शिल्प में आपने Bhopal की त्रासदी के साथ… Read more »

अमरेश गौतम

ह्रदय विदारक घटना पर बहुत ही मार्मिक रचना।
घटना के मृतकों को श्रद्धांजलि ।

INDRA Bahadur Shrivastav

हृदय स्पर्शी मार्कमिक कविता।

सुरेश कुशवाहा तन्मय

उस जघन्य आपराधिक हृदयविदारक घटना में प्रभावितों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए जिन्हें असमय अपने प्राणों की आहुति देना पड़ी उन्हें श्रद्धांजलि।
इस पर आपका मार्मिक काव्य कथन प्रणम्य है

Sadanand

निश्चय ही एक मार्मिक रचना,
किन्तु मेरा मन इसके साथ एक और प्रश्न पूछता है कि हमारी व्यवस्था कितनी पंगु और लिजलिजी है कि हम आज तक उसके अपराधी/यों को क्यों कोई दण्ड नहीं दे पाये ? वाह रे, देश का विधान।