हिन्दी साहित्य – कविता – जब मैं छोटा बच्चा था – डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जब मैं छोटा बच्चा था
जब मैं छोटा बच्चा था
तब सब कुछ अच्छा था
दादाजी कहते हैं, मेरे
तब मैं सच्चा था ।
तब न खिलोने थे ऐसे
मंहंगे रिमोट वाले
नहीं कभी बचपन ने
ऊंच नीच के भ्रम पाले
टी.वी.फ्रिज, कम्प्यूटर
ए. सी.नहीं जानते थे
आदर करना, एक-दूजे का
सभी मानते थे।
तब न स्कूटर कार कहीं थे
घर भी कच्चा था………
चाचा,मामा, मौसी,दादा
रिश्ते खुशबू के
अंकल,आंटी, माम् डेड,ब्रा
नाम न थे, रूखे
गिल्ली-डंडे, कौड़ी-कंचे
खेल, कबड्डी कुश्ती
खूब तैरना, नदी-बावड़ी
तन-मन रहती चुस्ती।
बड़े बुजुर्ग, मान रखते
बच्चों की इच्छा का……….
दहीं-महीं और दूध-मलाई
जी भर खाते थे
शक्तिवर्धक देशी व्यंजन
सब को भाते थे
सेन्डविच,पिज्जा-बर्गर का
नाम निशान न था
रोगों को न्योता दे
ऐसा खान-पान नहीं था।
बुड्ढी के वे बाल
शकर का मीठा लच्छा था………
हमें बताते, दादाजी
तब की सारी बातें
सुन कर खुश तो होते
पर, संशय में पड़ जाते
अचरज तो होता, सुनकर
जो भी वे, बतलाते
सहज,सरल शिक्षा
नीति की ज्ञान भरी बातें।
पर जब भी, जो कहा
उन्होंने बिल्कुल सच्चा था…..
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’