हिन्दी साहित्य – कविता – * दुनिया भर के बेटों की ओर से… * – श्री विवेक चतुर्वेदी
श्री विवेक चतुर्वेदी
दुनिया भर के बेटों की ओर से…
(प्रस्तुत है जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी की एक भावप्रवण कविता – श्री जय प्रकाश पाण्डेय)
एक दिन सुबह सोकर
तुम नहीं उठोगे बाबू…
बीड़ी न जलाओगे
खूँटी पर ही टंगा रह जाएगा
अंगौछा…
उतार न पाओगे
देर तक सोने पर
हमको नहीं गरिआओगे
कसरत नहीं करोगे ओसारे
गाय की पूँछ ना उमेठेगो
न करोगे सानी
दूध न लगाओगे
सपरोगे नहीं बाबू
बटैया पर चंदन न लगाओगे
नहीं चाबोगे कलेवा में बासी रोटी
गुड़ की ढेली न मंगवाओगे
सर चढ़ेगा सूरज
पर खेत ना जाओगे
ओंधे पड़े होंगे
तुम्हारे जूते बाबू…
पर उस दिन
अम्मा नहीं खिजयाऐगी
जिज्जी तुम्हारी धोती
नहीं सुखाएगी
बेचने जमीन
भैया नहीं जिदयाएंगे
उस दिन किसी को भी
ना डांटोगे बाबू
जमीन पर पड़े अपलक
आसमान ताकोगे
पूरे घर से समेट लोगे डेरा बाबू … तुम
दीवार पर टंगे चित्र
में रहने चले जाओगे
फिर पुकारेंगे तो हम रोज़
पर कभी लौटकर ना आओगे ।।
© विवेक चतुर्वेदी