डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’
(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन)
पहले क्या खोया जाए
पशमीना की शाल-से
पिता जी भी थे तो बेशकीमती
पर खो दिए मुफ्त में
माँ है
अभी भी खोने के लिए
कितना भी कुछ कर लो
खोती ही नहीं
कुछ समझती भी नहीं
ऊपर से गाती रहती है
‘खोने से ही पता चलती है कीमत
बेटे!
पिता जी तो समझदार थे
समय पर
खोकर बता गए कीमत
खो जाऊँगी मैं भी
किसी समय, एक दिन
तब पता चलेगी कीमत मेरी भी
पर पता नहीं
यह क्यों नहीं चाहती
बतानी कीमत अपनी भी
समय पर
देर क्यों कर रही है
निरर्थक ही
हम भरसक कोशिश में रहते हैं
खो जाए किसी मंदिर की भीड़ में
छोड़ भी देते हैं
यहाँ-वहाँ मेले-ठेले में
कभी तेज़-तेज़ चलकर
कभी बेज़रूरत ठिठक कर
और
जानना चाहते हैं कीमत
माँ की भी
सोचता हूँ
होने की कीमत जान न पाया तो
खोने की ही जान-समझ लूँ
कुछ तो कर लूँ समय पर
कीमत समझने का ।
यही कामयाब तरीका चल रहा है
इन दिनों
इसी तरीके से तो एक-एक कर
खोते रहे हैं रिश्ते दर रिश्ते
दादा-दादी,नाना-नानी
ताऊ,ताई,मामा-मामी
और पिताजी भी
अब तो
‘एंजेल’ या ‘मार्क्स’ भी तो नहीं बचे हैं
इस गरीब के पास
या तो एक अदद माँ बची है
या फिर एक अदद फटा कंबल
कीमत दोनों की जानना ज़रूरी है
अब इतने छोटे भी नहीं रहे जो,
माँ के सीने से चिपक कर
बिताई जा सकें सर्द रातें
फिर कोई तो बताए
आखिर पहले क्या खोया जाए ?
अधफटा कंबल या
अस्थि शेष माँ?
© डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’
बहुत संवेदनशील, विचारोत्तेजक,मन को झकझोरने वाली कविता।बहुत बहुत आभार।
बेहद मार्मिक और चिंतनीय कविता।