सुश्री ऋतु गुप्ता
बेटी
(सुश्री ऋतु गुप्ता जी रचित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर का एक सार्थक कविता ‘बेटी’।)
बेटी शब्द का आगाज होते ही
हृदय में सम्पूर्ण माँ बनाने की अद्वितीय अनुभूति होती है
बगैर बेटी जन्मे मानो नारी अधूरी होती है।
उसका पहली बार माँ बोलना
हृदय को मुदित ममतामयी कर जाता है
हर उदित उमंग उल्लासित कर
गरिमामयी पद अतुल्य अभिनंदन पाता है।
कदम पहला उसका उठते ही बेचैन
मन मुद्रा मुसकुराती छवि हो जाती है
उसकी इक-इक भाव भंगिमा
एकटक निहारते नैनों की चमक अद्भुत हो जाती है
विस्मय से भरता जाता उसका बड़ा होना
घर पूरा गूँजता मानों चिड़िया चहचहाती है
पग घूम-घूम जहाँ-जहाँ रखती
धरा धन्य हो अपार आभार प्रकट कर जाती है।
बेटी कभी नहीं होती पराई
जिस्म से कभी नहीं अलग होती परछाई
बड़ी होने पर भी वही आँचल आगोश सदैव लालायित रहते हैं ।
बोझ नहीं आन वह कलेजे का टुकड़ा गौरवान्वित हो कहते हैं।
© ऋतु गुप्ता
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Respected Sir,
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Hemant Bawankar
सरल रचना..