श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अखंड रचना! 

गहरी मुँदती आँखें,

थका तन,

छोड़ देता हूँ बिस्तर पर,

सुकून की नींद

देने लगती है दस्तक,

सोचता हूँ,

क्या आखिरी नींद भी

इतने ही सुकून से

सो पाऊँगा…?

नींद, जिसमें

सुबह किये जानेवाले

कामों की सूची नहीं होगी,

नहीं होगी भविष्य की ऊहापोह,

हाँ कौतूहल ज़रूर होगा

कि भला कहाँ जाऊँगा…!

होगा उत्साह,

होगी उमंग भी

कि नया देखूँगा,

नया समझूँगा,

नया जानूँगा

और साधन की अनुमति

मिले न मिले तब भी

नया लिखूँगा..!

 

देखना, समझना, रचना अखंड रहे।

 

©  संजय भारद्वाज , पुणे

9890122603

[email protected]

 

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ऋता सिंह

आत्मा तो अमर है, सच्चे लेखक की तीव्र मनोकामना भी अद्भुत है। यही तीव्रता महत्त्वकांक्षा कवि को ख़ास बनाता है। दीर्घायु हों कवि ,कलम चिरंजीवी हो !आमीन आमीन आमीन!!

Mukta Mukta

भारतीय संस्कृति में अटूट आस्था, आवागमन व कर्म-सिद्धांत में विश्वास और मानव जिजीविषा की सशक्त अभिव्यक्ति क़ाबिलेग़ौर है।

सुरेश कुशवाहा तन्मय

सकारात्मक सोच की सुंदर अभिव्यक्ति, बधाई

लतिका

गंभीर सोच, चिंतनशील कविता।