श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )
संजय दृष्टि – तो चलूँ….!
जीवन की वाचालता पर
ताला जड़ गया
मृत्यु भी अवाक-सी
सुनती रह गई
बगैर ना-नुकर के
उसके साथ चलने का
मेरा फैसला…,
जाने क्या असर था
दोनों एक साथ पूछ बैठे-
कुछ अधूरा रहा तो
कुछ देर रुकूँ…?
मैंने कागज़ के माथे पर
कलम से तिलक किया
और कहा-
बस आज के हिस्से का लिख लूँ
तो चलूँ…!
© संजय भारद्वाज, पुणे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी
मोबाइल– 9890122603
(कविता संग्रह ‘योंही’)
कागज़ के माथे पर कलम से तीलक …
काल भी हारा उसके आगे,लेखनी की शक्ति को शत शत नमन।
मैंने कागज़ के माथे पर
कलम से तिलक किया…. वाह ! अभिनव सोच
धन्यवाद सर, आज का लिखना आज ही पूरा होना चाहिए। बाद में लिखूंगी ऐसा मैं हमेशा कहती हूं लेकिन वह कभी नहीं होता।
‘गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् ।
वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः ‘॥
भूतकाल पर रोना बेकार हैं वो गुज़र गया,और भविष्य की डोर हमारे हाथ नहीं,
इसलिए ज्ञानी हमें वर्तमान में रहने की सलाह देते हैं
बहुत बोधपर
विजया चेकसिंगानी
काल भी थम जाएगा कवि की वाणी पर
काग़ज़ पर जब तिलक करेगा वह
मृत्यु एक और जन्म के लिए यहीं छोड़ जाएगी।
अभी बाकी है जीवन की वाचालता
अभी बहुत कुछ लिखना है,देना है भरपूर
फिर काल भी उस पर तरस खाएगा।
उठ़ कवि उठ, निपटाअपने काम
मेरे हिस्से का जीवन भी करता हूँ तेरे नाम!!
काल ,तुझे मेरा प्रणाम।
मैं निःशब्द हूँ श्री संजय जी की कविताओं, लघुकथाओं और आलेखों को पढ़ कर। उनकी रचनाओं पर उपरोक्त टिप्पणियाँ मुझे प्रेरित करती हैं इस यज्ञ को सतत जारी रखने के लिए। आप सबका साधुवाद।