हिन्दी साहित्य – कविता – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – तो चलूँ….! ☆ – श्री संजय भारद्वाज
श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )
संजय दृष्टि – तो चलूँ….!
जीवन की वाचालता पर
ताला जड़ गया
मृत्यु भी अवाक-सी
सुनती रह गई
बगैर ना-नुकर के
उसके साथ चलने का
मेरा फैसला…,
जाने क्या असर था
दोनों एक साथ पूछ बैठे-
कुछ अधूरा रहा तो
कुछ देर रुकूँ…?
मैंने कागज़ के माथे पर
कलम से तिलक किया
और कहा-
बस आज के हिस्से का लिख लूँ
तो चलूँ…!
© संजय भारद्वाज, पुणे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी
मोबाइल– 9890122603
(कविता संग्रह ‘योंही’)