हिन्दी साहित्य – कविता – मन तो सब का होता है – डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
मन तो सब का होता है
मन तो सब का होता है
बस, एक पहल की जरूरत है।
निष्प्रही, भाव – भंगिमा
चित्त में,मायावी संसार बसे
कैसे फेंके यह जाल, मछलियां
खुश हो कर, स्वयमेव फंसे,
ताने-बाने यूं चले, निरन्तर
शंकित मन प्रयास रत है
बस एक पहल की जरूरत है।
ये, सोचे, पहले वे बोले
दूजा सोचे, मुंह ये, खोले
जिह्वा से दोनों मौन, मुखर
-भीतर एक-दूजे को तोले
रसना कब निष्क्रिय होती है
उपवास, साधना या व्रत है
बस एक पहल की जरूरत है।
रूकती साँसे किसको भाये
स्वादिष्ट लालसा, रोगी को
रस, रूप, गंध-सौंदर्य, करे
-मोहित,विरक्त-जन, जोगी को
ये अलग बात,नहीं करे प्रकट
वे अपने मन के, अभिमत हैं
बस एक पहल की जरूरत है।
आशाएं, तृष्णाएं अनन्त
मन में जो बसी, कामनायें
रख इन्हें, लिफाफा बन्द किया
किसको भेजें, न समझ आये
नही टिकिट, लिखा नहीं पता
कहाँ पहुंचे यह ,बेनामी खत है
बस एक पहल की जरूरत है।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’