श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – गणित, कविता, आदमी! ☆

(माँ सरस्वती की अनुकम्पा ऐसी रही कि गणित की रुक्षता से कविता की सरसता को राह मिली।)

 

बचपन में पढ़ा था

X + X , 2X होता है,

X × X,  X² होता है,

Y + Y,  2Y होता है

Y × Y,  Y² होता है..,

X और Y साथ आएँ तो

X  + Y होते हैं,

एक-दूसरे से

गुणा किये जाएँ तो

XY होते हैं..,

X और Y चर राशि हैं

कोई भी हो सकता है X

कोई भी हो सकता है Y,

सूत्र हरेक पर, सब पर

समान रूप से लागू होता है..,

फिर कैसे बदल गया सूत्र

कैसे बदल गया चर का मान..?

X पुरुष हो गया

Y स्त्री हो गई,

कायदे से X और Y का योग

X + Y होना चाहिए

पर होने लगा X – Y,

सूत्र में Y – X भी होता है

पर जीवन में कभी नहीं होता,

(X + Y)² = X² + 2XY + Y²

का सूत्र जहाँ ठीक चला है,

वहाँ भी X का मूल्य

Y की अपेक्षा अधिक रहा है,

गणित का हर सूत्र

अपरिवर्तनीय है

फिर किताब से

ज़िंदगी तक आते- आते

परिवर्तित कैसे हो जाता है.. ?

 

जीवन की इस असमानता को

किसी तरह सुलझाओ मित्रो,

इस प्रमेय को हल करने का

कोई सूत्र पता हो तो बताओ मित्रो!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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ऋता सिंह

सच्चाई तो यही है मित्र कि X और Y कभी समान नहीं हो सकते!
वे अपने व्यक्तित्व को लेकर ही उत्पन्न हुए हैं , पर प्रयास अवश्य किया जा सकता है।सुंदर विवेचन ।शायद ही इसपर कोई सोचता हो।

अलका अग्रवाल

जीवन जीने के लिए X+Y का होना आवश्यक है, अतः दोनों का ही बराबरी का दर्जा है। यहाँ गणित के अन्य सूत्र कआम नहीं आते। सुंदर गणितीय अभिव्यक्ति।

विजया टेकसिंगानी

प्रमेय के x और y सोचते नहीं जिंदगी के x और y सोचतें हैं लेकिन उम्मीद तो है क्यों कि अगर गलत सोच रहे हैं तो उसे सही करनें की क्षमता भी रखते हैं,जैसे कि स्वयं संजय जी
मेरी लघु समझ के मुताबिक
???