डा. मुक्ता
मुक्तक
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है सार्थक मुक्तक)
मौन की भाषा
ग़र समझ ले इंसान
मिट जाए द्वैत भाव औ द्वंद्व
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रिश्ते आज नीलाम हो रहे
संदेह,संशय,शक,अविश्वास
दसों दिशाओं में
सुरसा की मानिंद फैल रहे
किस पर विश्वास करे इंसान
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रिश्तों की डोरी
अलमस्त
भर देती जीवन में उमंग
बरसाती अलौकिक आनंद
महक उठता मन आंगन
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खुद से खुदी तक का सफ़र
तय करने के पश्चात् भी
इंसान भीड़ में
स्वयं को तन्हा पाता
अजनबी सम
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काश!इंसान समझ पाता
रिश्तों की अहमियत
सम्बंधों की गरिमा
बहती स्नेह, प्रेम की निर्मल सलिला
और जीवन मधुवन बन जाता
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© डा. मुक्ता,
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत,drmukta51 @gmail.com