हिन्दी साहित्य – कविता – शेष कुशल है – श्री हेमन्त बावनकर
श्री हेमन्त बावनकर
शेष कुशल है
ये तीन शब्द
“शेष कुशल है”
काफी कुछ समेटे हैं
अपने आप में।
एक पुस्तक गढ़ दी है
इन तीन शब्दों नें।
मेरी चिट्ठी पढ़ी आपने
मैंने आपकी चिट्ठी पढ़ी
अपने आप में।
सच ही तो है
मन बड़ा चंचल है।
जाने क्या-क्या है सोचता?
जाने क्या-क्या है सुनता?
जैसे
हरि अनन्त
हरि कथा अनन्ता।
कुछ बातें चिट्ठी में
नहीं लिखी हैं जाती
अन्तर्मन की
पीड़ाएँ खुलकर के
मुखरित नहीं हैं होती।
वैसे तो आज
चिट्ठी कौन लिखता है?
सोशल मीडिया पर
नकली मुस्कराहट लिए चेहरा
और बेमन मन
दोनों ही दिखता है?
चिट्ठी उसे वही है लिखता
जिसका जमीर
कहीं नहीं है बिकता
या फिर
ऐसा हो मजमून
ताकि सनद रहे
वक्त जरूरत पर काम आवे।
गाँव की मिट्टी की सौंधी खुशबू
जाने कहाँ खो जाती है?
भैया भाभी की याद
सदा एकान्त में
सदा रुलाती है।
अलमारी सिरहाने में
चिट्ठी के एक-एक शब्द में
आपका अथाह प्रेम झलकता है।
एक-एक लिखी घटना से
सारा हृदय धड़कता है।
कितने भोले हो भैया
सारे गाँव की बात बताते हो।
अपना मर्म अपनी तकलीफ़ें
संकेतों में समझाते हो।
खुद आंबाहल्दी – चूना
गुड़ का लेप लगाते हो
और
भाभी के इलाज के खर्चे की
चिन्ता बहुत जताते हो।
आपका छोटे हूँ
ऐसी बहुत सी बाते हैं
लिखना मुश्किल है
अब क्या लिखूँ
बस
यही सोच सोच
अपना मन बहलाते हैं।
यह सच है कि
साठ सत्तर के बाद
हम सब
बोनस जीवन ही जीते हैं
और
अपने आपको
मुक्तिधाम की कतार में पाते हैं।
अब तो
मन साझा करने
चिट्ठियाँ लिखें भी तो
लिखें किसे?
आपकी लाड़ी भी छूट गईं!
बस
अब तो
खुद को ही लिखना है
और
खुद को ही पढ़ना है।
शेष कुशल है।
शेष कुशल है।
© हेमन्त बावनकर
(वरिष्ठ साहित्यकार अग्रज डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी की कृति ‘शेष कुशल है’ से प्रेरित कविता।)