हिन्दी साहित्य – कविता – शामियाना/छोड़ चक्कर – डॉ भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(1)

शामियाना 

शामियाने के होते

है कई रूप

मिल गया मुझे मेरे अनुरूप

जब से मिल गया

तेरा शामियाना

सुकून और चैन

छा गया मेरे आँगना।

तन मन हो गया

सभी का प्रफुल्लित

हो गई तेरी कृपा

दिन रात तुझे ही जपा।

हम सबको

सूरज देता है प्रकाश

छाया है शामियाना आकाश

धरती पर उतरती है

धीरे-धीरे रूप की

सुनहरी धूप

छाया है नूर का सुरूर

जब तक है तेरा शामियाना

तब तक अस्तित्व है हुजूर।

प्रभु तेरे शामियाने का

अनोखा है रूप

कभी ओलो की बरसात

कभी फसलें दुखी

कभी फसलें सुखी

कभी बरसता अमृत रूपी पानी

कभी धरती होती धानी

तेरे शामियाने के रूप

हैं अनूप।

दीवाली में लगते है

हर जगह शामियाने

कहीं मिठाई

कहीं पटाखे

कहीं मचती है नृत्य की धूम

कहीं राम नाम की धुन

शामियाने के रूप अनेक

जब तक हैं धरती पर पांव

रहेगी हम पर तेरी छाँव।

© डॉ भावना शुक्ल

 

(2)

छोड़ चक्कर 

शामियाने

उखड़े-गड़े

छोटे बड़े ।

शामियाना लगा है तो

वाह है

शामियाना मिले हमको

यह सभी की चाह है

किंतु

खाली शामियाना क्या करेगा

खाली हुई गुण संपदा

कहां से लाकर भरेगा

छोड़ चक्कर

शमियानों का

मचानो का

ख्याल कर ले

भूख से जर्जर

मकानों का ।

© डॉ भावना शुक्ल