हिन्दी साहित्य – कविता – * समुद्र पार उड़ी जाती * – डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन)

समुद्र पार उड़ी जाती
नदी की धार पर  उछलती
मछली हो
कि धारा भी
गहरे सरोवर की
कमल नाल हो
कि अथाह अक्षुण्ण नीली जलराशि  भी
अपने बारे में  कुछ भी बताती क्यों नहीं
ओ मेरी प्राण प्रिये!
बर्फ पर पसरी हुई दूधिया चाँदनी हो
कि सात घोड़ों के रथ पर सवार
सूरज की स्वर्ण रश्मि भी
फ़सलों की बालों पर तैरती शबनम हो
कि हरित धान्य भी
पवित्र दूर्वा हो पावन संस्कारों  की
कि आरती उतारी जाती थाल की
जलती हुई टिकिया भी हो  कपूर की
जब  हाथ बढ़ाता हूं
तुम्हारी आरती को
लौ से ऊष्मा भर देती हो
और सिर्फ झांक कर आखिर क्यों रह जाती हो
अपने बारे में कुछ बताती क्यों नहीं
समुद्र पार उड़ी जाती
ओ मेरी प्राण गंध प्रिये!
© डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’