हिन्दी साहित्य – कविता/ग़ज़ल ☆ मेरे घर का मंज़र देखना ☆ – सुश्री शुभदा बाजपेई

सुश्री शुभदा बाजपेई

 

(सुश्री शुभदा बाजपेई जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप हिंदी साहित्य  की ,गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर  कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी एक आपकी एक बेहतरीन ग़ज़ल  “मेरे घर का मंज़र देखना ”. )

 

☆ मेरे घर का मंज़र देखना ☆

 

तुम कभी  आकर के मेरे घर  का मंज़र देखना,

दर्द के बिस्तर पे  फ़ैली ग़म की चादर देखना।

 

रात की तन्हाई में जब मैं लिखूंगी खत कभी,

आग में लिपटे  हुए  अक्षर उठाकर देखना।

 

खुद समझ जाओगे तुम पीडा मेरे मन की जनाब,

एक पल मेरी जगह पर खुद को लाकर देखना।

 

आईनो को छोडकर खुदको कभी तन्हाई में,

दीन-ओ-ईमान की मूरत बना कर देख्नना।

 

लोग धोखा खायेंगे इस बार भी ‘शुभदा’ सुनो

खोखली मुस्कान चेहरे पर सजाकर देखना।

 

© सुश्री शुभदा बाजपेई

कानपुर, उत्तर प्रदेश