हिन्दी साहित्य- कविता – ☆ अब मुझे सपने नहीं आते ☆ – श्री रमेश सैनी
श्री रमेश सैनी
☆ अब मुझे सपने नहीं आते ☆
(प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री रमेश सैनी जी की सार्थक, सटीक एवं सामयिक कविता “अब मुझे सपने नहीं आते”।)
अब मुझे सपने नहीं आते
उन्होंने आना कर दिया है बंद
उनका नहीं
दोष मेरा ही है
वे तो आना चाहते है
अपने नए-नए रंग में
पर मैने ही मना कर दिया है
मत आया करो मेरे द्वार
फिर भला कौन आएगा
अपमानित होंने के लिए
अब मुझे नींद भी नहीं आती
जब नींद नहीं आती तो
भला सपनों क्या काम
समय के थपेड़ों ने कर दिया है
गहरे तक मजबूत
आदत सी पड़ गयी है
सपनों के बिना जीने की
कभी -कभी आ जाती है
झपकी या नींद
तब संभाल लेता हूँ
चिकोटी काट कर
कहीं सपने बस न जाएँ
मेरी आँखों में, क्योंकि
पहले ही बसा लिया था
गरीबी हटाओ और
अच्छे दिन आने वाले है
इन सुबह आने वाले सपनों को
विश्वास करता था, इस अंधविश्वास पर
होते हैं सच, सुबह वाले सपने
पर अब आ गया है समझ
अपनी आँखों को
रखता हूँ खुली
और सपनों को
आँखों से दूर
*
© रमेश सैनी , जबलपुर
मोबा . 8319856044