कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्
(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। आप सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत थे साथ ही आप विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में भी शामिल थे।)
कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने ‘प्रवीन ‘आफ़ताब’’ उपनाम से अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम भावप्रवण रचना “अटल सत्य !…”।
अटल सत्य ! ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆
समीप आता है मेरे
जीवन का वो काल
जब तुम देख सकोगे
मुझमें होते अगोचर,
– कुछ सूखे पत्ते, या वो भी नहीं,
– ठंड से कांपती,
लटकती जर्जर डालियों पर,
जहाँ कभी दुर्लभ पक्षी
देर तक कुछ मीठे गीत गाते थे…
अब तुम मुझमें मात्र
कुछ ऐसे ही दिन देख पाओगे
जैसे सूर्यास्त के पश्चात,
कालिमायुक्त ढलता धुंधलका
धीरे-धीरे गहन रात्रि में
समा जाता है…,
अटल मृत्यु का वो स्वरूप,
जो सभी को अपने में समा लेता है…
मुझमें भी तुम ऐसी ही
अग्नि प्रदीप्ति देख सकोगे
मृत्यु-शय्या पर सज्जित मेरे अवशेष
अंगारों में सुलगती अस्थियाँ
भस्म-स्वरूप होने को व्याकुल,
ये अग्नि-पोषित, अग्नि-भक्षित
नश्वर शरीर में है प्रगाढ़ प्रेम तुम्हारा
पर इसे तुम कहाँ समझ पाते हो,
उसी कुएं का आलिंगन करते हो,
जो तुम्हें लीलने को है तत्पर…
~ ‘प्रवीन ‘आफ़ताब
© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्
पुणे
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈