हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ अद्भुत और वत्सल सम्राट महाकवि ☆ – सुश्री उमा रानी मिश्रा
सुश्री उमा रानी मिश्रा
(सुश्री उमा रानी मिश्रा जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। आप कालिंदी महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापिका (संस्कृत) एवं प्रसिद्ध लेखिका हैं।आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित तथा आप अनेक सम्मानों से अलंकृत हैं।)
☆ अद्भुत और वत्सल सम्राट महाकवि ☆
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।
पठन में पुत्र-पुत्री के स्नेह से जब काव्य निचौडो़ ,
सातवें अंक के भरत दुष्यंत शकुंतला तो छोड़ो ,
कण्व और प्रकृति को भी चौथे अंक की विदाई में ढाल देता है ।।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
आज के नाटक, रंगमंच सिनेमा और अभिनेता
शोहरत-ए-आसमाँ भी उसमें मेरे पास माँ है कहता,
अनाथों की मां को भी शीशे में उतार लेता है ।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
जानते हो मालविकाग्नि के पिता-पुत्र स्नेह को ?
नाटक तो नाटक, कुमार में पार्वती और हिमालय के नेह को ?
वहाँ बचपन से बुढ़ापे तक जीवंत वत्सल ही तार देता है।
और रसों को आत्मा कहने वाला भी दर्पण में वत्सल अपार देता है
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
पार्वती और कुमार के प्रति वात्सल्य की समानता में,
गहरी बात है उसमें छुपे अद्भुत की महानता में ,
उसकी अनुभूति में बॉलीवुड, हॉलीवुड को छोड़ो,
सब कहते हैं शांत को रखो अद्भुत को छोडो़ ,
जिससे नटी ही नहीं सहृदय भी आत्मा के पार जाता है।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
जो कहता है शृंगार, वत्सल शांत या वीर राजा हो ,
यह सत्य भी आज सोचो तो आधा हो
क्यों ना अद्भुत साहित्य में रसों का राजा हो
क्योंकि अद्भुत ही वह रस है ,
जो सबको महानता उधार देता है।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
खोजते हैं सब नाटक और रंगमंच में ,
वीर, शृंगार, शांत के प्रपंच में,
महाकवि ही है जो ऐंटरटेनमेंट उधार देता है ।
वो महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
यह काव्य शोध का ही उत्कर्ष है ,
विराम नहीं अपितु एक विमर्श है ,
जो अद्भुत और वत्सल रस को नया आधार देता है ।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।
इसी कलम से बुद्धिजीवियों ने ग्रहों के आयाम पाए हैं।
सृष्टि के आदि अंत की उमा हूँ ,
जिसका साहित्य आपको हर्ष और विस्मय अपार देता है ।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
अंत करती हूँ वाणी और महाकवि को प्रणाम कर ,
जो कवि को नाट्यकर्ता की पहचान देता है।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
© उमा रानी मिश्रा