आधुनिक समाज… ☆ काव्य नंदिनी
इस समाज का कौन सा आकार है?
छोटा ना बड़ा बस सिमटा सा आकार है।
ना कहीं खिली धूप ना कहीं ठंडी छांव है।
ऐसा लगता है इंसान के कट गए पांव है।
क्या जाने कौन सा पंख लगा और रहा इंसान है
जिसमें ना धैर्य, शिक्षा और संस्कार है
इस समाज का कौन सा आकार है?
नारी की बातों का क्या कहना
कभी थी लज्जा शील उनका गहना
अब स्वतंत्रता के नाम पर
तोड़ रही मर्यादा की दीवार है
इस समाज का कौन सा आकार है ?
संतान अब वह संतान नहीं
जो अपनों क्या
गैरों का भी करते थे आदर
अब तो प्रतिस्पर्धा में भूल गए
अपने मां-बाप क्या
अपनी जिंदगी के उपकार भी
इस समाज का कौन सा आकार है ?
जाने कौन दिशा में जा रहा समाज है
किसी को किसी की सुनाई नहीं देती आवाज है
जिसमें मंजिल की तो तलाश है
लेकिन उस तलाशी का कोई नहीं गवाह है
इस समाज का कौन सा आकार है ?
मानव छोटा ना बड़ा बस सिमटा आकार है
इस समाज का कौन सा आकार है ?
© काव्य नंदिनी
जबलपुर, मध्यप्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈