श्री हेमन्त बावनकर
(यह कविता समर्पित है तीन वर्षीय सीरियन बालक ‘आयलान’ को जो उन समस्त बच्चों का प्रतिनिधित्व करता है जो विश्व में युद्ध की विभीषिका में इस संसार को छोड़ कर चले गए। आज ही के दिन 2सितंबर 2015 की एक सुबह आयलान का मृत शरीर तुर्की के समुद्र तट पर लावारिस हालात में मिला। उसे भले ही विश्व भूल गया हो किन्तु वह जो प्रश्न अपने पीछे छोड़ गया हैं, उन्हें कोई भी संवेदनशील व्यक्ति नहीं भूल सकता। इस कविता का अंग्रेजी अनुवाद भी इस कविता के अंत में प्रस्तुत है। इस कविता का जर्मन अनुवाद भी उपलब्ध है । )
☆ आयलान ☆
धीर गंभीर
समुद्र तट
और उस पर
औंधा लेटा,
नहीं-नहीं
समुद्री लहरों द्वारा
जबरन लिटाया गया
एक निश्चल-निर्मल-मासूम
‘आयलान’!
वह नहीं जानता
कैसे पहुँच गया
इस निर्जन तट पर।
कैसे छूट गई उँगलियाँ
भाई-माँ-पिता की
दुनिया की
सबको बिलखता छोड़।
वह तो निकला था
बड़ा सज-धज कर
देखने
एक नई दुनिया
सुनहरी दुनिया
माँ बाप के साये में
खेलने
नए देश में
नए परिवेश में
नए दोस्तों के साथ
बड़े भाई के साथ
जहां
सुनाई न दे
गोलियों की आवाज
किसी के चीखने की आवाज।
सिर्फ और सिर्फ
सुनाई दे
चिड़ियों की चहचाहट
बच्चों की किलकारियाँ।
बच्चे
चाहे वे किसी भी रंग के हों
चाहे वे किसी भी मजहब के हों
क्योंकि
वह नहीं जानता
और जानना भी नहीं चाहता
कि
देश क्या होता है?
देश की सीमाएं क्या होती हैं?
देश का नागरिक क्या होता है?
देश की नागरिकता क्या होती है?
शरण क्या होती है?
शरणार्थी क्या होता है?
आतंक क्या होता है?
आतंकवादी क्या होता है?
वह तो सिर्फ यह जानता है
कि
धरती एक होती है
सूरज एक होता है
और
चाँद भी एक होता है
और
ये सब मिलकर सबके होते हैं।
साथ ही
इंसान बहुत होते हैं।
इंसानियत सबकी एक होती है।
फिर
पता नहीं
पिताजी उसे क्यों ले जा रहे थे
दूसरी दुनिया में
अंधेरे में
समुद्र के पार
शायद
वहाँ गोलियों की आवाज नहीं आती हो
किसी के चीखने की आवाज नहीं आती हो
किन्तु, शायद
समुद्र को यह अच्छा नहीं लगा।
समुद्र नाराज हो गया
और उन्हें उछालने लगा
ज़ोर ज़ोर से
ऊंचे
बहुत ऊंचे
अंधेरे में
उसे ऐसे पानी से बहुत डर लगता है
और
अंधेरे में कुछ भी नहीं दिख रहा है
उसे तो उसका घर भी नहीं दिख रहा था
माँ भी नहीं
भाई भी नहीं
पिताजी भी नहीं
फिर
क्योंकि वह सबसे छोटा था न
और
सबसे हल्का भी
शायद
इसलिए
समुद्र की ऊंची-ऊंची लहरों नें
उसे चुपचाप सुला दिया होगा
इस समुद्र तट पर
बस
अब पिताजी आते ही होंगे ………. !
© हेमन्त बावनकर, पुणे
(This poem is dedicated to a three-year-old Syrian boy ‘Aylan’ who represents all children who left this world under shadows of war. The dead body of ‘Aylan’ was found unattended on the beach of Turkey on 2nd September 2015. The world will forget him one day, but, one cannot forget the questions that he left behind him. The Hindi and German Version of this poem is also available.)
☆ Aylan ☆
The calm
sea shore
and he
calm, serene, innocent
Aylan
rolled inverted,
No…. no…
forcibly laid down
by the sea.
He does not know
how he reached on
the deserted beach.
How he missed
fingers of daddy.
Leaving the world
and everyone
in deep sorrow.
He left his homeland
with parents
to see and experience
the new world,
golden world
in the shadow of parents
to play
with new friends
in a new country
in new surroundings
with new friends
with elder brother
where,
he will not hear
any gunshots
anyone’s screams.
He will be able to hear
only and only
birds’ chirping sounds
children’s laughter.
Children!
Whether they are
of any colour,
of any religion.
Because,
he does not know
and
does not want to know
that –
What is a country?
What are the borders of the country?
What is a citizen?
What is citizenship?
What is a refuge?
What is a refugee?
What is terrorism?
What is a terrorist?
He just knows it
that
the earth is one
the sun is one
and
the moon is also one
and
these all are together
for the entire world.
There are so many human beings
but,
the humanity is one.
He does not know
why his father was taking them
to another world
in the dark
across the sea.
Maybe,
there,
he will not hear
any gunshots
any cries.
But,
perhaps
the sea did not like it.
The sea was angry
and began to throw them
vigorously
high
very high
in the dark
he was very afraid of the water
and
did not see anything in the dark.
He did not see his home,
even mom,
brother and dad too.
Maybe,
he was the youngest
and
lighter than all.
Hence,
high-rise waves of the sea
quietly put him to sleep
on the beach
enough,
………. now dad will be here soon!
© Hemant Bawankar, Pune
वाह हिंदी अंग्रेजी दोनों में प्रभावी शब्दावली
हिंदी अंग्रेजी दोनों में प्रभावी शब्दावली
बेहतरीन अभिव्यक्ति
सुंदर अभिव्यक्ति, दिल को छू लेने वालें शब्दों में प्रस्तुती , बधाई हो