श्री अमरेंद्र नारायण
( आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्री अमरेंद्र नारायण जी की ओजस्वी कविता आनंद सरसता बरसाओ)
☆ आनंद सरसता बरसाओ! ☆
इस लुका -छुपी अवगुंठन से
ओ प्रेम निकल कर आ जाओ
घर-घर में मधुरता ले आओ!
आनंद सरसता बरसाओ!
चिंताओं से जग जूझ रहा
सर्जित,कल्पित या आयातित
कुछ नियति की हैं देन तो कुछ
हैं स्वार्थ अहम ,भ्रम से प्रेरित
यदि तुम रहते मानव मन में
चिंता ,दुविधा से रहित भुवन
आनंदमग्न होती जगती
नहीं रहती कोई जलन तपन
ओ प्रभु के वरदान रूप
अब शुष्क धरा को सरस करो
स्नेह बूंदें बरसा जाओ!
आनंद सरसता बिखराओ!
रस की धारा है सूख रही
मानव के एकाकी उर में
आओ संगीत निनादित हो
नर भी गाये खुश हो सुर में
तुम हो अमूल्य उपहार,हमें
अपने स्नेहिल रस से भर कर
अब धरती को हुलसा जाओ!
आनंद सरसता बरसाओ!
सच है नर ने की अवहेला
और मोल न जग ने पहचाना
पर तुम में क्षमा समाहित है
अब हमसे दूर नहीं जाना!
आओ हर उर में वास करो
बोझिल ,उदास इस वसुधा पर
उल्लास हास बन छा जाओ!
आनंद फुहारें बरसाओ!
© श्री अमरेन्द्र नारायण
जबलपुर,१८ अगस्त २०२०
अच्छी रचना