सुश्री अंजली श्रीवास्तव
☆ कविता ☆ उमंग ☆ सुश्री अंजली श्रीवास्तव☆
बहुत दिनों से जीवन मेरा था लगता सूना सूना सा,
धड़क रहा था हृदय यूँ मेरा बस,जैसे मरा मरा सा।
यूँ तो काम सभी करती थी मानो बोझ हो कोई,
प्रत्यक्ष में तो जगती रहती थी,लेकिन सोई सोई।
न तो कोई आस थी हृदय में, न ही कोई उमंग थी,
विचारों की धारा थी मानो लक्ष्य विहीन पतंग थी।
तन से तो कुछ ही अस्वस्थ थी,मन पूरा विदीर्ण था,
कोई बात भाती न थी, मस्तिष्क इतना संकीर्ण था।
यूँ तो इस स्थिति का कारण कुछ भी विशेष न था,
विश्व महामारी में सामाजिक जीवन ही शेष न था।
बात अगर सोचो तो बस,बात तो बहुत जरा सी है,
हर आत्मा अकेली है और अपनेपन की प्यासी है।
नगरबंद समाप्त हुआ,कुछ आशा का संचार हुआ,
कुछ तन और मन के मेरे, स्वास्थ्य में सुधार हुआ।
प्रियजनों से मिलने की, हृदय में जाग उठी उमंग,
हुआ उल्लसित हृदय, तन मन में उठने लगी तरंग!
© सुश्री अंजली श्रीवास्तव
26/11/2020
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈