श्री अरुण कुमार दुबे
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “प्यार जब रूह नहीं सूरत से…“)
एक ग़ज़ल – इबादत में अक़ीदत की कसर होगी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
(एक ग़ज़ल – 1222 1222 1222 1222, रदीफ़ टूट जाता है, काफ़िया आ स्वर)
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जरा सी चोट लगते प्रेम धागा टूट जाता है
वफ़ा में खोट आते दिल का शीशा टूट जाता है
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पड़ेगी गांठ चुभती उम्र भर जो जोड़कर फिर से
किसी इंसा से जब इंसा का रिश्ता टूट जाता है
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समझ के साथ बढ़ता आदमी का नजरिया सच है
लुटा समझे जो बच्चे का खिलौना टूट जाता है
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गुनाहों की सज़ा मुजरिम को दो रोको ये बुलडोजर
भुगतता है घराना जब घरौदा टूट जाता है
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बड़ी जब शख्सियत कोई जहां से कूच है करती
फ़लक से लोग कहते हैं सितारा टूट जाता है
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दिलों में फासला होता दिखावा करना जो कर लो
किसी का जब किसी पर से भरोसा टूट जाता है
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ये मेरी बद नसीबी का सितम भी देखिये साहिब
जो साक़ी भेजती मुझको वो प्याला टूट जाता है
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बचाना जिसको वो चाहे उसे फिर कौन मारेगा
शिकारी जो भी फैलाये वो फंदा टूट जाता है
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शरीफों के लिए घर में लगाया जाता है इनको
हो कोई चोर तो कोई भी ताला टूट जाता है
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इबादत में अक़ीदत की कसर होगी तो ये समझो
करोगे लाख कोशिश फिर भी रोज़ा टूट जाता है
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जो तैयारी बिना मैदान में आ पेंच लड़वाओ
उड़ाओगे पतंग ऊँची तो मांजा टूट जाता है
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अरुण कमजोर कड़ियों पर नजर दुश्मन रखें बचन
रहेगी गर पकड़ कच्ची तो घेरा टूट जाता है
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© श्री अरुण कुमार दुबे
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