श्री जयेश कुमार वर्मा
(श्री जयेश कुमार वर्मा जी बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता एकाकी मन ….।)
☆ कविता ☆ एकाकी मन …. ☆
कोई चाह कर भी
नहीँ जान, सकता,
व्यथित मन के भाव,
भले ही सब ये मानते,
समय सीखा देता सहना,
मन का दर्द,
हर, जीवंत, अभाव,
कुछ जीवन प्रसंग ऐसे होते हैं,
जिसमे सब तो सहभागी होते हैं,
लेकिन रिश्तों की इस भीड़ में भी,
कुछ, के, मन, बहुत एकाकी होते हैं,
उनकी पीर गहरी, भी,
सन्नाटे सी महसूस होती है,
लाख हुए जतन,
खोल ना पाया,
कोई वो, एकाकी मन,
तोड़ ना पाया, उसका,
मौन सन्नाटा,
लिये फिरता अभी भी, वो,
एकाकी मन, एकाकी मन
© जयेश वर्मा
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