श्री जयेश कुमार वर्मा
(श्री जयेश कुमार वर्मा जी बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता औरतें…।)
☆ कविता ☆ औरतें… ☆
छू रहीं,
अनन्त नभ, अंतरिक्ष,
दशों दिशाएँ,
बढ़ रहा विश्वास,
आत्मसम्मान, उनका,
हर क्षेत्र में,
स्थापित, उत्कृष्ट
आयाम, से,
पर
बहुत सी,
छीलती, रात दिन, घास,
लातीं पाताल से पानी,
अब भी, क्यों,
सींचती जाती
मन का रेगिस्तान
उम्र भर…
सब यह, जो, उन पर,
अब भी, बीत, रहा,
मेटती खुद, लगन से,
सहतीं, परस्पर,
युगों की नारी पीर,
समाज की हेय, प्रताड़ना,
हो, या,
पुरुष की कुत्सित, भावना…
लड़ रहीं,
समय से, समाज से,
वे सब औरतें,
अपनी अपनी, तरह से
कभी, जीतती,
कभी हारती,
अकेली, बन, दुर्गा…
बनें वे दुर्गा…
© जयेश वर्मा
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