सुश्री हरप्रीत कौर
(आज प्रस्तुत है सुश्री हरप्रीत कौर जी की एक समसामयिक भावप्रवण कविता “करवा चौथ और महंगाई”।)
☆ कविता ☆ करवा चौथ और महंगाई ☆
कृष्ण पक्ष की चौथ,
करवे से देती चाँद को अर्ध्य
करती पति की दीर्घायु
होने की कामना,
सुहाग बना रहे
बस यही भावना.
सजना के लिए
करती साज सिंगार,
षोडशी की तरह दमकता रूप,
उपहार, होता बस प्यार
जताने का बहाना
होती यूं लालायित
मानो मिलेगा संसार.
उधर,
पिया जी हैं असमंजस में,
मिलती है आधी पगार
महामारी की है मार.
बाजारों में रौनक छाई है,
उत्सवों की अंगड़ाई है.
क्या, कैसे खरीद लूँ
जो “प्रिया” के मन
को भाए,
कुछ समझ ना आए.
तोहफा तो नहीं
जो जमा पूंजी है पास मेरे
वह सब दे दूँगा,
जो उतने में आये ले आना
साफ कह दूँगा.
अरमान कैसे करेगी पूरे
मेरे पास पैसे हैं थोड़े.
कलाइयों में चूड़ियाँ सजानी हैं,
हाथों में मेंहदी भी रचानी है,
पूजा के लिए साड़ी
नयी होनी चाहिए.
साजन के मन की बातों से
अंजान नहीं थी सजनी
वो भी झेल रही थी
महँगाई की मार.
कह दी उसने
दिल की बात,
चाँद के साथ देख
मुख तेरा,
तेरे करों से करूँ
जल-भोजन ग्रहण
हो जाए जीवन
मेरा सफल
बस यही तुम्हारा प्रेम
है मेरा उपहार.
© सुश्री हरप्रीत कौर
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