सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगणी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी द्वारा रचित एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “पूस की सुबह…”। )
☆ कोहरे के आँचल से # पूस की सुबह… ☆ सौ. सुजाता काळे ☆
सूरज ठिठुर गया है, छिप गया है,
चाँद की रजाई ओढ कर।
हवा भी चल रही है पुरवाई से,
हिमनग गोद में लिए।
अभी अभी फिर से उतर आई है किरणें,
आँगन में पूस के प्रकोप के बाद भी।
थोडी सी तपिश मिल रही है,
ठिठुरती हुई धरती को।
रेशमी किरणों का जाल ओढकर,
अब लुप्त हो रही हैं ओस की बूंदे,
कोहरे के बादल का आँचल है पहने,
पूस की सुबह आज मेरे आँगन
उतर आई है।
© सुजाता काळे
पंचगणी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684