सुश्री शीला पतकी

☆ कविता ⇒ काल के पन्नो पे लिखी… ☆ सुश्री शीला पतकी

(एक लेखक के सच्ची घटना पर आधारित…!)

15 ऑगस्ट 1947 मे /

हिंदुस्तान आझाद हुआ/

लाल किल्ले पे नेहरू जी ने /

था तिरंगा लहराया //

*

काल के पन्नो पे लिखी थी/

उसी रात एक खूनी कहानी /

उसके पात्र थे शायद यारो/

तुम्हारे मेरे नाना नानी//

*

धुंधली सी वो रात थी यारो /

सन्नाटे और अंधेरे में /

सन्नाटा कुछ बोल रहा था/

अंधेरा ना कोई सुन रहा था//

*

 पाकिस्तान से ट्रेन एक आई/

स्टेशन था अमृतसर भाई/

धीरे धीरे ट्रेन रुक गयी /

कोई न हलचल न उतरा कोई //

*

शायद सन्नाटा फिर बोला/

छैला सिंह स्टेशन मास्टरने

छलांग लगाई डिब्बे में और/

हलके से दरवाजा खोला//

*

देख दृश्य अंदर का वो/

थर-थर थर-थर कांप गया/

डिब्बे में पूरे कटे शव थे /

खून से लथपथ थी हर काया//

*

किसकी जिव्हा किसके हाथ /

किसी की गर्दन किसके पाँव/

महिलांओं के शरीर विवस्त्र थे/

कटे थे शव, कटे स्तन थे //

*

मांस के टुकडे, खून की नदिया/

भूल से बचे बच्चे नन्हे /

रो रो अपने माँ के शव से/

स्तन को शायद ढूंढ रहे थे  //

*

छैलासिंह तो डरा हुआ था/

फिर भी उसने आवाज लगायी/

घबराओ मत मेरे भाई /

ये अमृतसर है, ना धोका कोई //

*

मरे हुए मुर्दो मे भी तनिक/

थोडी सी जान थी आई/

थोडे से थे हाथ हिले /

फिर दम उसने भी तोड दिये//

*

 छैला सिंह की फटी थी आंखे/

 फूट फूट कर वो रो रहा था/

 इतने मे एक मुर्दा  बोला/

 क्या स्वतंत्र हुआ देश हमारा?//

*

अहिंसा पे बापू /

शायद हिंदुस्थान जना/

पर निश्चित मेरे मुर्दे पे/

आज ये पाकिस्तान बना//

आज पाकिस्तान  बना../

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© सुश्री शीला पतकी

माजी मुख्याध्यापिका सेवासदन प्रशाला सोलापूर 

मो 8805850279

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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