आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आज प्रस्तुत है आचार्य संजीव वर्मा ‘ सलिल ‘ जी की एक समसामयिक रचना ‘क्या होएगा?‘।)
☆ क्या होएगा? ☆
इब्नबतूता
पूछे: ‘कूता?
क्या होएगा?’
काय को रोना?
मूँ ढँक सोना
खुली आँख भी
सपने बोना
आयसोलेशन
परखे पैशन
दुनिया कमरे का कोना
येन-केन जो
जोड़ धरा है
सब खोएगा
.
मेहनतकश जो
तन के पक्के
रहे इरादे
जिनके सच्चे
व्यर्थ न भटकें
घर के बाहर
जिनके मन निर्मल
ज्यों बच्चे
बाल नहीं
बाँका होएगा
.
भगता क्योंहै?
डरता क्यों है?
बिन मारे ही
मरता क्यों है?
पैनिक मत कर
हाथ साफ रख
हाथ साफ कर अब मत प्यारे!
वह पाएगा
जो बोएगा
© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
२१-३-२०२०
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