हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कुम्भ की त्रासदी ☆ –डा. मुक्ता
डा. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। कुछ लोगों के लिए कुम्भ एक पर्व है और कुछ लोगों के लिए त्रासदी। जिनके लिए कुम्भ एक पर्व है उस पर तो सब लिखते हैं किन्तु, जिसके लिए त्रासदी है , उसके लिए वे ही लिख पाते हैं जो संवेदनशील हैं। डॉ मुक्ता जी की लेखनी को सादर नमन।)
कुम्भ के अवसर पर
छोड़ दी जाती हैं वृद्धाएं
अपने आत्मजों
जिगर के टुकड़ों द्वारा
अनुपयोगी समझ
क्योंकि इक्कीसवीं सदी
उपभोक्तावाद पर केंद्रित
“यूज़ एंड थ्रो” जिसका मूल-मंत्र
और वे अगले कुंभ की प्रतीक्षा में
अपने बच्चों पर आशीष बरसातीं
दुआओं के अम्बार लगातीं
ढोती रहती हैं ज़िंदगी
नितांत अकेली…इसी इंतज़ार में
शायद! लौट आए उसका लख्ते-जिगर
और उसे अपने घर ले जाए
जहां बसी है उसकी आत्मा
और मधुर स्मृतियां।
© डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com