सौ. वृंदा गंभीर

☆ कविता – खुबसूरत बाप्पा का रूप… ☆ सौ. वृंदा गंभीर ☆

बाप्पा जा रहे हैं तो क्या हुआ

रास्ता लंबा है तो क्या हुआ

बाप्पा तो दिल में बसे हैं

अगले साल बाप्पा आने वाले हैं

 *

बाप्पा भगवान जरूर हैं

मगर दोस्त जैसे लगते हैं

जो मांगो दिल से दे जाते हैं 

भक्ति भाव देखकर लौट आते हैं

*

विघ्नहर्ता मंगलमूर्ती हैं

सब विघ्न का निवारण  करते हैं

बाप्पा बहोत प्यारे हैं

सब के वो दुलारे हैं

*  

विष्णू जी का बाल रूप हैं

 अग्र स्थान में विराजमान हैं

 रिद्धी सिद्ध उनकी दासी हैं

 पार्वती माँ के लाडले हैं

 *

गजमस्तक धारण किया हैं

प्यारा सा रूप दिल को भाता है

माथे पे माणिक हैं अंगुठी में पांचों हैं

बाप्पा हमारे बहुत प्यारे हैं

 – दत्तकन्या

© सौ. वृंदा गंभीर

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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