श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आज प्रस्तुत है आपकी महात्मा गाँधी जयंती के अवसर पर एक कविता  “2 अक्टूबर ”। इस रचना में व्यक्त विचार साहित्यकार के व्यक्तिगत विचार हैं। )

श्री श्याम खापर्डे जी ने  इस कविता के माध्यम से लॉकडाउन की वर्तमान एवं सामाजिक व्याख्या की है जो विचारणीय है।) 

☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष – कविता – 2 अक्टूबर  ☆ 

पिछले वर्ष–

2 अक्टूबर के दिन

नेताओं को राजघाट पर

सत्य, अहिंसा और देशप्रेम के प्रति

कसमे खाते देखकर

हमारे एक मित्र ने

हमारे सामने  कसम खाई

नैतिक मूल्यों के प्रति

अपनी वचन बद्धता दोहराई

कि, आज से हम

शुध्द, सात्विक जीवन जियेंगे

इस कलमुंही शराब को

कभी नहीं पीयेंगे

 

इस वर्ष–

जब 2 अक्टूबर को

वह रास्ते मे मिला

उसे देख हमारा हृदय

अंदर तक हिला

वह हाथ में बोतल लिए

घूम रहा था

शराब के नशे में

झूम रहा था

हमे देख वह रुका

अभिवादन के लिए झुका

बोला–

मै वाकई तुम्हारा गुनहगार हूं

कसम तोड़ने को लाचार हूं

 

मैने उन सभी नेताऔं को

साल भर,

हर पल,

उन कसमों को तोड़ते देखा है

असत्य, हिंसा और पाखंड से

इस देश को जोड़ते देखा है

इनके अंदर की इंसानियत

मर गई है

इनके शरीर में शैतान की आत्मा

भर गई है

ये  किसी दिन

अपने स्वार्थ के लिए

बापू के आदर्शो को बेच डालेंगे

 

मित्र ,

आज प्रातःकाल मैने राजघाट पर

उन्हीं नेताऔं को फूल चढ़ाते देखा है

फिर वही कसमें खाते देखा है

तब से मै बड़ी बेचैनी मे जी रहा हूं

यार,

मजबूरी मे कसम तोड़कर

शराब पी रहा हूं .

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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