प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की एक समसामयिककविता कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार? हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष ☆
☆ हे बापू ☆
हे सत्य अहिंसा आराधक गंभीर विचारक व्याख्याता
हे कर्मवीर कृषकाय वृति क्या ग्रह के सत्याग्रह के उद्गगाता
हे सबल आत्मविश्वासी निर्भय युगदृष्टा युग निर्माता
कर याद तुम्हारी बार-बार आंखें रोती मन भर आता
तुमने दी जग को नई दृष्टि मानव को एक जीवन दर्शन
तुम बने रहे सारे जीवन नई राजनीति के आकर्षण
तुमने की मानव से ममता , पर दुराचार का तिरस्कार
संयमी तपस्वी किया सदा तुमने संशोधन परिष्कार
एक आंधी सी बन आये तुम सारे जग को झकझोर गए
बापू तुम तो भारत ही क्या दुनिया का रुख मोड़ गए
तुम थे भारत के प्राण तुम्हारी वाणी भारत की वाणी
तुमको पा भारत धन्य हुआ हे संत तत्वदर्शी ज्ञानी
कुछ समझ ना पाए लोग कि तुम थे मानव या अवतारी
जो भी थे पर यह तो सच है तुम हो पूजा के अधिकारी
तुम नवल शक्ति लेकर आए आजादी देकर चले गए
सब रहे देखते ठगे हुए मानो जादू से हों छले गए
तुम तो दे गए वरदान मगर हमने कि तुमसे नादानी
है अभी सीखना बहुत हमें हम जो अज्ञानी अभिमानी
है ऋणी तुम्हारी यह दुनिया जिसको तुमने पथ दिखलाया
जिसको थी ममता सिखलाई बन्धुत्व प्रेम था सिखलाया
करती है बापू याद तुम्हें हर रोज तुम्हारी वह वाणी
जो आग बुझाकर चंदन लेप लगा जाती थी कल्याणी
हम क्षमा प्रार्थी अभिलाषी तव कृपा करो हे सिद्धकाम
हैं विनत तुम्हारे चरणों में शत-शत वंदन शत-शत प्रणाम
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈