हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गौरैया ☆ – श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। मैं कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी का हृदय से आभारी हूँ जिन्होने हीरा तलाश कर भेजा है। संभवतः ग्रामीण परिवेश में रहकर ही ऐसी अद्भुत रचना की रचना करना संभव हो। कल्पना एवं शब्द संयोजन अद्भुत! मैं निःशब्द एवं विस्मित हूँ, आप भी निश्चित रूप से मुझसे सहमत होंगे। प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय जी कीअतिसुन्दर रचना “गौरैया”।)
संक्षिप्त परिचय
व्यवसाय – कृषि, इंजन मैकेनिक
नौकरी – डाक विभाग – ग्रामीण पोस्टमैन
सम्मान – “कलम के सिपाही” टर्निंग टाइम द्वारा प्रदत्त 5 अगस्त 2017
अभिरुचि – समाज सेवा, साहित्य लेखन
सामाजिक कार्य – रक्तदान, मृत्यु-पश्चात शोध कार्य हेतु देहदान, बहन की मृत्यु पश्चात नेत्रदान में सहयोग, निर्धन कन्याओं के विवाह में सक्रिय योगदान।
☆ गौरैया ☆
मेरे घर के मुंडेर पर
गौरैया एक रहती थी
अपनी भाषा मे रोज़ सवेरे
मुझसे वो कुछ कहती थी
चीं चीं चूं चूं करती वो
रोज़ माँगती दाना-पानी
गौरैया को देख मुझे
आती बचपन की याद सुहानी
नील गगन से झुंडों में
वो आती थी पंख पसारे
कभी फुदकती आँगन आँगन,
कभी फुदकती द्वारे द्वारे
उनका रोज़ देख फुदकना,
मुझको देता सुकूँ रूहानी
गौरैया को देख मुझे
आती बचपन की याद सुहानी…
चावल के दाने अपनी चोंचों में
बीन बीन ले जाती थी
बैठ घोसलें के भीतर वो
बच्चों की भूख मिटाती थी
सुनते ही चिड़िया की आहट
बच्चे खुशियों से चिल्लाते थे
माँ की ममता, दाने पाकर
नौनिहाल निहाल हो जाते थे
गौरैया का निश्छल प्रेम देख
आँखे मेरी भर आती थी
जाने अनजाने माँ की मूरत
आँखों मे मेरी, समाती थी
माँ की यादों ने उस दिन
खूब मुझे रुलाया था।
उस अबोध नन्ही चिड़िया ने
मुझे प्रेम-पाठ पढ़ाया था
नहीं प्रेम की कोई कीमत
और नहीं कुछ पाना है
सब कुछ अपना लुटा लुटाकर
इस दुनिया से जाना है
प्रेम में जीना, प्रेम में मरना
प्रेम में ही मिट जाना है,
ढाई आखर प्रेम का मतलब
मैंने गौरैया से ही जाना है!
-सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208