श्री घनश्याम अग्रवाल

 

☆ घनश्याम जी के दोहे – “पहली बरसात” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल

मौका अच्छा हाथ मेँ, सोच रहा है चोर।

सोया थानेदार है, और घटा घनघोर ॥

(चोरोँ को पहली बरसात मुबारक )

कुछ के तो छप्पर उडे, कुछ के बहे मकान।

तब जाकर उनकी बनी, कोठी आलीशान ॥

(महाचोरोँ को भी पहली बरसात मुबारक)

चालाकी का फायदा, उठा रहें हैं आज ।

दुगुने दामों बेचते, भीगा हुआ अनाज ।।

(जमाखोरों को पहली बरसात मुबारक)

बेबस हो लुटती रही, चीख गई बेकार ।
शोर बादलों का घना, टूटे बिजली तार ।।

(हरामखोरों को भी पहली बरसात मुबारक)

(मित्रो, रचना और रचनाकार का संबंध माँ और बच्चे सा होता है। बिना नाम के शेयर करने का पाप न करें।)

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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