श्री रामस्वरूप दीक्षित

(ई-अभिव्यक्ति में श्री रामस्वरूप दीक्षित जी  का हार्दिक स्वागत है।  मूल विधा गद्य व्यंग्य । इसके अतिरिक्त कविताएं  और लघुकथाएं भी लिखते है । धर्मयुग,सारिका ,हंस ,कथादेश  नवनीत,कादंबिनी ,साहित्य अमृत,वसुधा, व्यंग्ययात्रा, अट्टाहास एवं जनसत्ता ,हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा,दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, नईदुनिया,पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका,सहित देश की सभी प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कुछ रचनाओं का पंजाबी, बुन्देली, गुजराती और कन्नड़ में अनुवाद। मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की टीकमगढ़ इकाई के अध्यक्ष

☆ कविता – चाहो तो ☆

चाहो तो

सोच सकते हो तुम भी

उन हालातों के बारे में

जो बना दिये गए हैं

तुम्हारे आसपास

और उन्हें बनाने वालों के बारे में भी

कि अगर ये हालात न बनाये  गए होते

तो तुम्हारी ये हालत न होती

तुंम भी

महसूस कर सकते थे

फूलों की महक

दूधिया चांदनी में

झरता हुआ प्रेम

अपने बालों को सहलाती

किसी की उंगलियों की छुअन

किसी के घर की तरफ से आने वाली हवाओं में

सूंघ सकते थे

उनकी देह की गंध

किसी की याद में सुधबुध खोकर

कंकड़ फेंकते रह सकते थे

किसी बहती हुई नदी की धार में

पर

अब तो

कुछ भी सोचना सम्भव नहीं तुम्हारे लिए

एक अदृश्य बाघ की

धारीदार पीठ

और पैने नाखून

तैर जाते हैं आंखों में

कुछ भी सोचने से पहले

 

© रामस्वरूप दीक्षित

सिद्ध बाबा कॉलोनी, टीकमगढ़ 472001  मो. 9981411097

ईमेल –[email protected]

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