श्री रामस्वरूप दीक्षित
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामस्वरूप दीक्षित जी गद्य, व्यंग्य , कविताओं और लघुकथाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। धर्मयुग,सारिका, हंस ,कथादेश नवनीत, कादंबिनी, साहित्य अमृत, वसुधा, व्यंग्ययात्रा, अट्टाहास एवं जनसत्ता ,हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा,दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, नईदुनिया,पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका,सहित देश की सभी प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कुछ रचनाओं का पंजाबी, बुन्देली, गुजराती और कन्नड़ में अनुवाद। मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की टीकमगढ़ इकाई के अध्यक्ष। हम समय समय पर आपकी सार्थक रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास करते रहते हैं।
☆ कविता – चलता हुआ आदमी ☆श्री रामस्वरूप दीक्षित ☆
बिना थके
बिना रुके
लगातार चलता हुआ
एक
निडर , निहत्था आदमी
खींच देता है
तानाशाह की नींद की चादर
और बिखर जाते हैं
चादर की तहों में लिपटे
खूंखार सपने
एक मेमना
खींच देता है
शेर के कान
शेर की दहाड़
तोड़ देती है दम
उसी के गले में
जंगल देखने लगा है
आजादी का स्वप्न
चलता हुआ आदमी
एक बयान है
ठहरे हुए समय के खिलाफ
© रामस्वरूप दीक्षित
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