हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जीवन पथ ☆ – सुश्री शुभदा बाजपेई

सुश्री शुभदा बाजपेई

(सुश्री शुभदा बाजपेई जी  हिंदी साहित्य  की गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर  कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी  एक  अतिसुन्दर कविता “जीवन पथ ”. )

☆  जीवन  पथ  ☆

छोड़ो किस्से बात पुरानी

नया जमाना नई कहानी

 

गाँव बन गए भूल भुलैया

शहर बहुत भाता है भैया

रोजी रोटी के जुगाड़ में

दिन भर खटता है रामैया

नियति रोज उसको दौड़ाती

तब जुड़ता है दाना पानी!

 

झूठे वादों ने लूटा है

खुशियों का दामन छूटा है

व्याकुल  मन अब क्यों रोता है

सगा नहीं कोई होता है

जीवन पथ पर निकल पड़े हैं

चलती मन मे खींचा तानी।।

 

कहीं बबूलों के जंगल हैं

कहीं महकती अमराई है

पीले करने हाथ सिया के

उर में चिंता गहन समाई है

किससे मन की व्यथा बताये

दुनिया लगती है वीरानी।।

 

© सुश्री शुभदा बाजपेई

कानपुर, उत्तर प्रदेश