सुश्री मनिषा खटाटे
☆ दो कवितायेँ ☆ [1] आत्मबोध के पथ पर [2] सर्वथैव है मनुष्य के लिए ☆ सुश्री मनिषा खटाटे☆
(मरुस्थल काव्य संग्रह की दो कवितायेँ। इन कविताओं का अंग्रेजी भावानुवाद जर्मनी की ई पत्रिका (Raven Cage (Poetry and Prose Ezine)#57) में प्रकाशित )
[1]
आत्मबोध के पथ पर
प्रश्न किया है मैने,
और उसका उत्तर भी दिया गया …….
शायद अंधेरा या साया?
बूँद समाती है सागर में,
उमड़ती, दौड़ती लहरों मे,
जो संपूर्ण से अब भी बाहर खड़ा है,
वह एक है.
काले पानी के पार,
दूर क्षितिज पर राह खत्म हो चूकी हैं.
मै खेलती हूँ और लड़ती भी हूँ,
मेरे आत्म प्रस्फूटन के साथ.
व्यक्त के पूर्व व्यक्त और उसके पीछे तथा पार भी व्यक्त,
बीज, नीति और मानवता के.
आत्मबोध की शक्ति के पथ पर,
ओह! मेरी आत्मा,
व्यक्त हो जाओ तुम पंछी और फूलों से,
बरस जाओ बारिश से भी,
बसंत से तुम खिल जाया करो,
और मेरी प्रार्थनाओं मे बस जाया करो.
[2]
सर्वथैव है मनुष्य के लिए
विश्व,
जगत,
सृष्टी,
यह सर्वथैव है मनुष्य के लिए.
पाशवीय तथ्य,
प्रेम और वासना,
ईश्वरी इच्छा और संगीत,
यह सर्वथैव है मनुष्य के लिए.
सत्य और यथार्थ,
प्रतीक और बिंब,
सत्ता और नीति,
यह सर्वथैव है मनुष्य के लिए.
स्वतंत्र आत्मा अहम के लिए,
मै, ईश्वर और उसके राज्य के लिए,
मै भी बाध्य हूँ उसके नियम लिखने के लिए.
बाह्य जगत ही अंतर्जगत हैं,
उस सर्वथैव मनुष्य के लिए.
© सुश्री मनिषा खटाटे
नासिक, महाराष्ट्र (भारत)