प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ दोहे – “कन्या भ्रूण हत्या-एक अभिशाप” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
भ्रूण हत्या अब नहीं,बंद करो यह पाप।
वक़्त दे रहा है हमें,तीखा-सा अभिशाप।।
कन्या का है जन्म शुभ,सोचो-समझो आज।
क्यों सोता है नींद में,दानव बना समाज।।
कन्याएँ मिटती रहीं,तो सब कुछ हो नाश।
जागे अब तो सभ्यता,लेकर चिंतन,काश।।
भ्रूण हत्या मूर्खता,बहुत बड़ा अविवेक।
अब जागे इंसानियत,ले विचार सत्,नेक।।
नारी यूँ घटती रही,तो बिगड़े अनुपात।
तब आना तय,साँच यह,गहन तिमिर की रात।।
पुत्र और बेटी सदा, होते एक समान।।
किस मूरख ने कह दिया,बेटा ही कुल-शान।।
कन्याएँ जब जन्म लें, पढ़कर हो उत्थान।
दोनों कुल की शान बन,पूर्ण करे अरमान।।
कन्या को यूं मारना,हैवानों का काम।।
होगी भाई इस तरह,असमय काली शाम।।
अब सँभलो,जागो अभी,गाओ मंगलगीत।
तभी उजाले को सभी,लेंगे हँसकर जीत।।
यही कह रहा आज तो,’शरद’ कँटीली बात।
जागो वरना,आ रही,बहुत भयावह रात।।
© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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