श्री अरविन्द मोहन नायक
(ई-अभिव्यक्ति में श्री अरविन्द मोहन नायक जी का हार्दिक स्वागत। जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एवं टेलीकम्यूनिकेशन में स्नातक। सार्वजनिक क्षेत्रों में 37 वर्षों में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए ओएनजीसी से महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत। कंप्यूटर सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर की समितियों में वरिष्ठ पदों का सफलतापूर्वक निर्वहन। आजीवन सदस्यता – FIETE, FIEI, SMCSI, MISTD। प्रकाशित कार्य – चार काव्य संकलन, यथा – ‘प्रयास’, ‘एहसास’, ‘आरोह’ एवं ‘सफर’। भावी योजनाएँ (सूक्ष्म संकेत) – लेखन के साथ-साथ जन जागरण और युवाओं में नई चेतना के संचार हेतु प्रयासरत। हम आपके साहित्य को अपने प्रबुद्ध पाठकों से समय -समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना ‘दीदार यूँ भले न हो‘।)
दीदार यूँ भले न हो… ☆ श्री अरविन्द मोहन नायक ☆
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फ़ासलों ने बख़्श दीं, नज़दीकियां हमें
याद उनकी आती है, हर वक़्त क्यों हमें
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दीदार यूँ भले न हो, मौज़ू हैं दिल में वो
नज़रों में वो समाए हैं, दिखते हैं वो हमें
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होता हूँ गो मैं रूबरू, आईने से गर
तेरा ही अक्स देखकर, याद आती है हमें
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‘नायक’ तेरी नियामतें, है तेरा शुक्रिया
तस्वीर कोई हो मगर, पाता तुझे हूँ मैं
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© श्री अरविन्द मोहन नायक
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