सुश्री मालती मिश्रा ‘मयंती’

 

(प्रस्तुत है सुश्री मालती मिश्रा  जी  की  एक भावप्रवण कविता।)

 

दीमक बनकर चाट रहा है, स्वांग यह भाईचारे का 

 

बेटियाँ बचाने का नारा,

सुन कर माँ हर्षायी थी।

तब लेके बिटिया की बलाएँ,

वह ममता बरसायी थी।।

 

नहीं जानती थी वह माता,

यहाँ दरिंदे रहते हैं।

दरिंदगी की हदें पार कर,

खुद को मानव कहते हैं।।

 

नन्हीं कलियाँ नहीं सुरक्षित,

अपने ही गलियारों में।

जीना उनका दुष्कर हो गया,

घर बाहर चौबारों में।।

 

कब तक माँ आँचल में रखकर,

कैसे उसे सुरक्षा दे।

बंद कोठरी में बिटिया को,

रखकर कैसे शिक्षा दे।।

 

दीमक बनकर चाट रहा है,

स्वांग यह भाईचारे का ।

घर-घर में अब पतन हो रहा,

नैतिकता के नारे का।।

 

©मालती मिश्रा मयंती✍️

दिल्ली
मो. नं०- 9891616087
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Sakshi

Nice?