हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दो राहा ☆– श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

 

☆ दो राहा  ☆

 

मेरी नेक-नियत,

मेरा भोलापन और सच्चाई।

तेरे जग में मुझे अकेला कर गई।

सोचता हूँ बैठूँ,

हर दिन मधुशाला में।

झुठे ही सही,

मदहोशी में ही सही।

अंजाने यारों के संग,

कुछ पल तो बीतेगें ही सही।

बोलकर सच,

खुद को पागल समझता हूँ।

बोलकर झूठ कभी,

खुद को मुजरिम समझता हूँ।

 

बैठा हूँ दो-राहे पर,

चलूं,

सूने-सच्चाई के,

रास्तों पर अकेला ही।

या,

चलूं,

मन विरूध्द और,

समा जाऊँ भीड़ में ही।

 

© माधव राव माण्डोले “दिनेश”, भोपाल 

(श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”, दि न्यू इंडिया एश्योरंस कंपनी, भोपाल में उप-प्रबन्धक हैं।)