हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दोहे ☆ – सुश्री शारदा मित्तल
सुश्री शारदा मित्तल
दोहे
(सुश्री शारदा मित्तल जी का e-abhivyakti में स्वागत है। आप महिला काव्य मंच चड़ीगढ़ इकाई की संरक्षक एवं वूमन टी वी की पूर्व निर्देशक रही हैं। प्रस्तुत हैं उनके दोहे। हम भविष्य में उनकी और रचनाओं की अपेक्षा करते हैं।)
कंकर पत्थर सब सहे, मैंने तो दिन रात ।
सागर सी ठहरी रही, मैं नारी की जात ।।
साथ निभाया हर घड़ी, मन की गाँठें खोल।
रिश्तों को महकाऐं हैं, तेरे मीठे बोल ।।
मानवता देखें नहीं, सब देखें औकात ।
इस सदी ने दी हमें, ये कैसी सौगात ।।
अड़ियल कितना झूठ हो, सब लेते पहचान ।
खामोशी भी बोलती, सच में कितनी जान ।।
मात-पिता का हाथ यूँ, ज्यूँ बरगद की छाँव ।
तू जन्नत को खोजता, जन्नत उनके पाँव ।।
बौराया जग में फिरे, कैसे आऐ हाथ ।
तू बाहर क्यूँ खोजता, वो है तेरे साथ ।।
खुद पर, तुझ पर, ईश पर, है इतना विश्वास ।
तूफ़ा कितने हों मगर, छू लूँगी आकाश ।।
शाखों से झरने लगे, अब हरियाले पात ।
शायद अपनों ने दिया, इनको भी आघात ।।
तुझे स्मरित जब किया, झुक जाता है शीश ।
प्रभु हमेशा ही मिले, बस तेरा आशीष ।।
नदी किनारे बैठकर कब बुझती है प्यास।
बिना भरे अंजलि यहाँ, रहे अधूरी आस।।
© शारदा मित्तल
605/16, पंचकुला