कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्
(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)
कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने ‘प्रवीन ‘आफ़ताब’’ उपनाम से अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी ऐसी ही अप्रतिम रचना “नदी की भयाकुलता”। यह रचना विश्व के सुप्रसिद्ध साहित्यकार खलील जिब्रान की प्रसिद्ध अंग्रेजी कविता “Fear” से प्रेरित है।
?️ नदी की भयाकुलता ?️
पौराणिक कथन है कि
समुद्र में प्रवेश करने से पूर्व
नदी एक आशंका से
भयाक्रांत हो जाती है…
ऊँचे पहाड़ों की चोटियों से उसने
जो एक लंबा रास्ता तय किया है,
उसका वो पुनरवलोकन करती है…
और पीछे पाती है,
घने जंगलों और बीहड़ गांवों के
हृदय को बेधती
एक स्याह, अंतहीन
सर्पाकार सड़क की भांति
एक अजेय जिजीविषा पूर्ण
उसकी जीवन यात्रा…
परंतु सामने है,
एक अंनत विशालकाय समुद्र
लीलने को तत्पर…
भयाक्रांत! उसे प्रतीत होता है
कि उसके अस्तित्व का
समापन अवश्यम्भावी है
हमेशा के लिए…
परन्तु कोई दूसरा रास्ता
भी तो संभव नहीं…
क्योंकि नदी पीछे नहीं जा सकती
वस्तुतः कोई भी वापस
नहीं जा सकता है..!
वापस जाना किसी के
अस्तित्व में संभव है ही नहीं…
नदी को सागर में प्रवेश करने का
जोख़िम उठाना ही पड़ेगा
तभी तो अगोचर भय पर
विजय प्राप्त हो पायेगी…
और नदी को यह ज्ञात होगा कि
वह महासागर में एकाकार हो
अपना अस्तित्व नहीं खोएगी,
अपितु स्वयं ही
महासागर बन जाएगी…!
~प्रवीन ‘आफ़ताब’
© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्
पुणे
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈