प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ नवरात्रि के दोहे ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
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दुर्गा माँ तुम आ गईं, हरने को हर पाप।
संभव सब कुछ है तुम्हें, तेरा अतुलित ताप।।
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बढ़ता ही अब जा रहा, जग में नित अँधियार।
करना माँ तुम वेग से, अब तो तम पर वार।।
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भटका है हर आदमी, बना हुआ हैवान।
हे माँ! दे दो तुम ज़रा, मानव-मन को मान।।
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सद्चिंतन तजकर हुआ, मानव गरिमाहीन।
दुर्गा माँ दुर्गुण हरो, सचमुच मानव दीन।।
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छोटी-छोटी बच्चियाँ, हैं तेरा ही रूप।
उन पर भी तुम ध्यान दो, बाँटो रक्षा-धूप।।
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हम सब हैं तेरा सृजन, तू सचमुच अभिराम।
दुर्गा माँ तू तो सदा, रखती नव आयाम।।
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ये पल पावन हो गए, लेकर तेरा नाम।
यह जग दुर्गे है सदा, तेरा ही तो धाम।।
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दुर्गा माँ तुम वेगमय, तुम तो हो अविराम।
धर्म, नीति तुमसे पलें, साँचा तेरा नाम।।
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दुर्गा माँ तुमने किया, मार असुर कल्याण।
नौ रूपों में तुम रहो, पापी खाते बाण।।
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सिंहवाहिनी दिव्य तुम, हम सब तेरे लाल।
दर्शन दो, हमको करो, हे माँ !आज निहाल।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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